आशा की किरण: मानसिक रोगों से ग्रस्त बच्चों में पैदा करती नई उम्मीद

“होम्योपैथी से संभव है इलाज”- डॉ बी एस जौहरी

गर्भावस्था के दौरान किसी प्रकार की शारीरिक समस्या होने पर मां के गर्भ में पल रहे शिशु पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसका असर शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास पर देखने को मिलता है। सेरीब्रल पाल्सी, ऑटिज्म, और मूक तथा बधिर होना कुछ ऐसी ही समस्याएं हैं जो जन्मजात हो सकती हैं। लेकिन सही समय पर यदि इनके इलाज और प्रबंधन पर ध्यान दिया जाए तो लक्षणों को बढ़ने से रोका जा सकता है। साथ ही बच्चों की व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार थेरेपी करवाने से उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

सेरीब्रल पाल्सी: समस्याएं और इलाज

सेरीब्रल पाल्सी एक ऐसा न्यूरोलॉजिकल विकार है, जो दिमाग का सही विकास ना हो पाने के कारण होता है। इस समस्या में मरीज की मांसपेशियों के तालमेल नहीं बैठ पाता, जिसके कारण चलने और हाथ पर हिलाने में दिक्कत आती है। मांसपेशियों की कमजोरी, अकड़न, और संतुलन की समस्याएं इस बीमारी में देखने को मिलती हैं। सेरीब्रल पाल्सी से प्रभावित बच्चों को चलने और दौड़ने के साथ सामान्य दैनिक गतिविधियों में भी समस्याएं हो सकती हैं।
हालांकि सेरीब्रल पाल्सी का कोई स्थाई इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को रोका जा सकता है। फिजिकल थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, और स्पीच थेरेपी की मदद से बच्चों की मोटर स्किल्स और संचार क्षमता को बेहतर बनाया जा सकता है। इसके अलावा दवाओं और सर्जरी से भी मांसपेशियों की अकड़न और दर्द को कम करना संभव है।

ऑटिज्म: समस्याएं और इलाज

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक ऐसा गंभीर विकार है, जो बच्चों के सामाजिक संपर्क, मेलजोल और सामान्य जीवन जीने में बाधा उत्पन्न कर सकता है। ऑटिज्म से प्रभावित बच्चे अक्सर बातें देर से समझ पाते हैं और बार बार एक ही तरह व्यवहार करते हैं। हालांकि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे भी सामान्य बच्चों की ही तरह दिमाग से तेज होते हैं लेकिन अपनी बात सही ढंग से नहीं कह पाते और ना ही संवेदनाएं दिखा पाते हैं।
ऑटिज्म का भी कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन जल्दी ध्यान देने से इस समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जैसे बिहेवियरल थेरेपी, स्पीच थेरेपी, और ऑक्यूपेशनल थेरेपी ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों के लिए बेहद कारगर है। इसके अलावा विशेष शिक्षा कार्यक्रम भी बच्चों की शैक्षिक और सामाजिक विकास में मदद कर सकते हैं।

मूक और बधिर: समस्याएं और इलाज

मूक और बधिर बच्चे में सुनने और बोलने की क्षमता का विकास नहीं हो पाता है, जिससे उन्हें एक सामान्य जीवन जीने और बाकी लोगों के साथ सामाजिक संपर्क स्थापित करने परेशानी उठानी पड़ती है। यह समस्या बच्चों के भाषा विकास, शैक्षिक प्रगति और सामाजिक जीवन को भी प्रभावित कर सकती है।

मूक और बधिर बच्चों के लिए विशेष शिक्षा और ऑडियोलॉजी सेवाएं महत्वपूर्ण हैं। श्रवण यंत्र, कॉक्लियर इम्प्लांट, और सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) का उपयोग बच्चों को अपनी बात कहने में सहायता करता है। साथ ही स्पीच थेरेपी और लिप-रीडिंग प्रशिक्षण भी काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
इस बीमारियों से पीड़ित बच्चों के लिए विशेष रूप से काम करने वाले डॉ बी एस जौहरी इस विषय में कहते हैं, ” इन समस्याओं को जड़ से तो खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन होम्योपैथी में कुछ हद तक इन बीमारियों का इलाज संभव है। ऐसे जरूरतमंद बच्चों के इलाज के लिए हम समय समय पर हेल्थ शिविर लगाते रहते हैं, जहां अनुभवी डाक्टरों की टीम इन बच्चों का इलाज करती है।” गौरतलब है कि डॉ जौहरी हर तीन महीने के अंतराल पर ‘आशा की किरण’ नामक शिविर का आयोजन करते हैं, जिसके अंतर्गत सेरीब्रल पाल्सी, ऑटिज्म, और मूक तथा बधिर बच्चों का निशुल्क इलाज किया जाता है। डॉ जौहरी ने यह भी कहा कि गर्भावस्था में महिला को अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखना चाहिए ताकि वह एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सके। हालांकि बच्चे में इस तरह के विकार माता पिता का मनोबल तोड़ देते हैं लेकिन सही समय पर सही इलाज से स्थिति को सुधारा जा सकता है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण डॉ बी एस जौहरी द्वारा आयोजित ‘आशा की किरण’ नामक शिविर में देखने को मिलता है, जहां हजारों बच्चे निशुल्क स्वास्थ्य लाभ ले चुके हैं। जो बच्चे बोल या सुन नहीं पाते थे, वो इलाज के बाद बोलने और सुनने लगे हैं।

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