ईरान के राष्ट्रपति रईसी की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत, पीएम मोदी ने जताया दुख

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई है. उनके साथ विदेश मंत्री समेत कुल 9 लोग इस हेलिकॉप्टर में सवार थे. जब ये हादसा हुआ तब रईसी अजरबैजान बॉर्डर इलाके से लौट रहे थे. उनके काफिले में कुल तीन हेलिकॉप्टर थे. बाकी दोनों हेलिकॉप्टर सुरक्षित हैं जबकि रईसी का हेलिकॉप्टर पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. रेस्क्यू टीम को पहाड़ी इलाके से मलबा मिल चुका है और ईरान की तरफ से मौत की आधिकारिक घोषणा भी कर दी गई है. हालांकि, इन सबके मौत के पीछे साजिश के सवाल भी लगातार उठ रहे हैं. ईरान के राष्ट्रपति के काफिले में 3 हेलिकॉप्टर मौजूद थे, जोकि अजरबैजान की सीमा पर एक बांध का उद्घाटन कर वापस लौट रहे थे. शुरुआती जानकारी के मुताबिक खराब मौसम और धुंध के चलते उत्तर-पश्चिम में अजरबैजान की सीमा के जोल्फा शहर के पास राईसी का हेलिकॉप्टर हादसा का शिकार हुआ. काफिले के दो अन्य हेलिकॉप्टर सही-सलामत लौटने में कामयाब हुए हैं और यही बात कई सवालों को जन्म दे रही है कि आखिर क्यों राष्ट्रपति वाला ही हेलिकॉप्टर हादसे का शिकार हुआ है. जबकि हेलिकॉप्टर सबसे अच्छी कंडीशन वाला था. ये हादसा ईरान और इजराइल के बीच बड़े तनाव के समय हुआ है, तो इसको इजराइल से जोड़कर देखा जाना कोई चौंकाने वाली बात नहीं है अजरबैजान में मौजूद है मौसाद?
इजराइल अक्सर अपने दुश्मनों को विदेशी जमीन पर मारने की साजिश रचता रहता है. ऐसे ऑपरेशन्स को इजराइल की खुफिया एजेंसी मौसाद अंजाम देती है. अजरबैजान और इजराइल की करीबी किसी से छिपी नहीं है. USSR से अलग होने के बाद 1991 में तुर्किए के बाद इजराइल दूसरा देश था जिसने अजरबैजान को मान्यता दी थी. अजरबैजान और इजराइल के बीच दशकों से राजनायिक संबंध स्थापित हैं. 2012 में ‘द लंदन टाइम्स’ अखबार में छपे एक लेख में दावा किया गया था कि मोसाद ईरान पर नजर रखने के लिए अजरबैजान की जमीन का इस्तेमाल कर रहा है. ‘द लंदन टाइम्स’ ने ये लेख मोसाद के एक एजेंट से मिली जानकारी के आधार पर छापा था. हालांकि, एक तथ्य ये भी बताया जाता है कि अजरबैजान में इजराइली एजेंटों की तुलना में ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड (IRGC) ज्यादा सक्रिय हैं. लेकिन लेख में इजराइल एजेंट ने इसपर कहा था कि हमारा और उनको काम करने का तरीका अलग है.

अजरबैजान और ईरान के बीच वैसे तो संबंध सामान्य रहे हैं लेकिन इनके बीच समय-समय पर तल्खी आने की मुख्य वजह इजराइल भी रहा है. दोनों पड़ोसियों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के कई वजह हो सकती हैं जैसे बाकू ने अक्सर परशियन द्वारा ईरान में रह रहे एज़ेरिस (अजरबैजान समुदाय) के खिलाफ भेदभाव की शिकायत की है.

अजरबैजान एक शिया मुस्लिम बहुल देश है, जहां करीब 55 फीसद शिया मुस्लिम और करीब 40 फीसद सुन्नी मुस्लिम रहते हैं. इसके साथ एक डेटा के मुताबिक देश में 3 से 4 फीसद ईसाई और लगभग 9 हजार यहूदी धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं. शिया बहुल होने की वजह से अजरबैजान की जनता का झुकाव हमेशा से ईरान की ओर रहा है. लेकिन अजरबैजान सरकार के अमेरिका और इजराइल से गहरे संबंध हैं. अजरबैजान एक प्रमुख ऊर्जा उत्पादक देश है और इज़राइल को तेल एक्सपोर्ट करता है, बदले में इजराइल से उसे हथियार और सैन्य हार्डवेयर मिलते हैं.

अजरबैजान के शिया देश होने का बाद भी इजराइल से दोस्ती क्यों है? इसको समझना उतना ही आसान जितना “दुश्मन का दुश्मन दोस्त” वाली कहावत को. दराअसल अजरबैजान का आर्मेनिया के साथ लंबे समय से जातीय और क्षेत्रीय संघर्ष रहा है. ईरान की सीमा आर्मेनिया से भी मिलती और ईसाई देश आर्मेनिया के साथ भी उसके काफी गहरे रिश्ते हैं, दोनों ही देश क्षेत्र में रणनीतिक और व्यापारिक साझेदार हैं. ‘द नेशनल इंटेरेस्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों देशों का व्यापार साल 2021 में 471 मिलियन डॉलर था.

अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच 2020 में हुए युद्ध के बाद अजरबैजान ने नागोर्नो-काराबाख के क्षेत्रों और हिस्सों पर फिर से कब्जा कर लिया था. इस जंग में आर्मेनिया का साथ इजराइल, पाकिस्तान और तुर्की ने खुले तौर पर दिया था. जबकि ईरान क्षेत्र में किसी भी भौगोलिक बदलाव का विरोध करता आया है. जंग में जीत के बाद अजरबैजान की सड़कों इजराइल फ्लैग भी लहराए गए थे.

अगर इस हमले में इजराइल का हाथ पाया जाता है तो अजरबैजान और ईरान के रिश्ते एक बार फिर बिगड़ सकते हैं. हिज्बुल्ला ने तो खुले तौर पर धमकी दे दी है कि अगर इजराइल का इस मामले में हाथ पाया गया तो अंजाम अच्छे नहीं होंगे. इसके अलावा क्षेत्र में तनाव और बढ़ सकता है. जानकार मानते हैं अगर ऐसा हुआ तो पहले से गाजा और यूक्रेन जंग की मार झेल रही दुनिया को जंग का एक और मोर्चा खुलने से तेल, सोना जैसे उत्पादों की कीमतों में उछाल देखने मिल सकता है.11:56 AM

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