तिरुपति का ‘प्रसादम’ तो एक बानगी है, खाद्य पदार्थों में मिलावट देश में कभी गंभीर मुद्दा रहा ही नहीं !

News Report By: रवींद्र रंजन

आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के ‘प्रसादम’ लड्डू में शुद्ध देशी घी की जगह फिश ऑयल और जानवरों की चर्बी वाला तेल इस्तेमाल किए जाने का खुलासा होने के बाद से हड़कंप मचा हुआ है। देश भर में इस मुद्दे को लेकर बहस छिड़ गई है। मंदिर के पूर्व मुख्य पुजारी रमण दीक्षाथलु ने कहा है कि लोगों की आस्था और पवित्रता के खिलाफ बहुत बड़ा पाप किया गया है। श्रद्धालुओं के बीच इसे लेकर जबरदस्त आक्रोश है। कोई इसे आस्था के साथ धोखा बता रहा है, तो कोई इसे धर्म भ्रष्ट करने की साजिश। लेकिन इस आक्रोश से मौजूदा व्यवस्था में कोई बहुत बड़ा बदलाव आएगा, इसकी उम्मीद कम ही नजर आती है। क्योंकि खाद्य पदार्थों में मिलावट और नकली खाद्य पदार्थ हमारे देश में कभी भी गंभीर मुद्दा नहीं रहे ! जब भी इनसे जुड़ा कोई मामला सामने आता है, कुछ दिन शोर-शराबा होता है और उसके बाद सब शांत हो जाता है। सब कुछ पहले की तरह ढर्रे पर चलने लगता है।

देश में संभवत: एक भी ऐसा वाक्या नहीं है, जब किसी मिलावटखोर को ऐसी सख्त सजा हुई हो कि नज़ीर बन जाए। मिलावटखोरी की पुष्टि होने के बाद भी कभी किसी कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हुई। इसीलिए नकली चीजें बनाने और मिलावटखोरी करने वालों के हौसले बुलंद रहते हैं। अपने लाभ के लिए वो बदस्तूर लोगों के जीवन को खतरे में डालते रहते हैं।

2022 में अमेरिका के ‘सेंटर्स फॉर डीजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ (सीडीसी) और गाम्बिया की हेल्थ अथॉरिटी की साझा तफ्तीश में पता चला था कि एक भारतीय फार्मा कंपनी के कफ सीरप में एथिलीन ग्लाइकॉल की मौजूदगी के कारण गाम्बिया के 66 बच्चों की मौत हो गई। डब्ल्यूएचओ ने साफ-साफ चेतावनी देते हुए कहा था कि बच्चों की मौत का कारण भारतीय फार्मा कंपनी के ‘दूषित’ और ‘कम गुणवत्ता’ वाले चार कफ सीरप हो सकते हैं, जिनमें प्रोमेथाज़िन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सीरप, मकॉफ़ बेबी कफ सीरप और मैग्रीप एन कोल्ड सीरप शामिल हैं। लेकिन दुख की बात यह है भारत सरकार ने इस मामले में कोई सख्त कदम उठाने की बजाय उल्टा फार्मा कंपनी का ही बचाव किया और कहा कि इस बात की पुष्टि नहीं है कि भारतीय कंपनी के कफ सिरप से किडनी को नुकसान पहुंचने के कारण 66 बच्चों की मौत हुई।

इससे पहले साल 2020 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ पत्रिका की जांच में एक बड़ी ‘खाद्य धोखाधड़ी’ का पर्दाफाश हुआ था। जिसके तहत भारतीय और जर्मन लैब में जांचे गए शहद के 22 में से 17 सैंपल शुद्धता के टेस्ट में विफल रहे थे। शहद में चीनी की चाशनी की मिलावट पाई गई थी। फेल होने वाले ब्रांडों में पतंजलि, डाबर, झंडू, सोसाइटी नेचरल, बैद्यनाथ, इंडिजिनस, हाय हनी, हितकारी, दादेव और एपिस शामिल थे। सीएसई ने अपनी जांच रिपोर्ट भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के साथ साझा की। लेकिन हैरानी का बात यह है कि इन कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, और ये कंपनियां आज भी बेखौफ होकर कथित मिलावटी शहद बेच रही हैं। आज के समय में व्यवसाय से जुड़ा हर शख्स यह जानता है कि शहद में गोल्डन सिरप, इनवर्ट शुगर सिरप और राइस सिरप को इम्पोर्ट कर धड़ल्ले से मिलाया जा रहा है। लेकिन मिलावटखोंरों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से उनके हौसले बुलंद हैं।

इससे पहले साल 2003 और 2006 में सॉफ्ट ड्रिंक में भी मिलावट पाई गई थी, लेकिन सॉफ्ट ड्रिंक बनाने वाली कंपनियां आज भी आराम से अपना कारोबार कर रही हैं। मिलावटी शहद या सॉफ्ट ड्रिंक ही नहीं, बल्कि कोई भी मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचने वाली किसी कंपनी के खिलाफ सरकार ने कभी कोई बहुत सख्त कदम उठाया हो, ऐसा कभी भी सुनने में नहीं आया। इससे लगता है कि सरकार खुद भी अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर कुछ खास चिंतित और गंभीर नहीं है।

यह बेहद परेशान करने वाली बात है कि देश में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता कोई मुद्दा ही नहीं है। ज्यादा मुनाफे के लिए खाद्य पदार्थों में धड़ल्ले से हानिकारक चीजें मिलाई जाती हैं। हर साल त्योहारों के समय बड़े पैमाने पर नकली मावा पकड़ा जाता है। सिंथेटिक दूध और पनीर बनाने वालों का भी बहुत बार भंडाफोड़ हो चुका है। नकली और मिलावटी खाद्य तेल, मिलावटी मसाले, दालें आदि की बिक्री बड़े पैमाने पर खुलेआम होती है। लेकिन संबंधित एजेंसियां आम तौर पर सिर्फ त्योहारों के समय ही सक्रिय होती हैं। यहां तक कि जीवन बचाने वाली दवाओं के नाम पर नकली दवाएं बनाने वाले और बेचने वाले भी सक्रिय हैं, लेकिन ना कहीं कोई पारदर्शी मॉनीटरिंग है और ना ही कहीं कोई सुनवाई।

मिलावटी और नकली खाद्य पदार्थ बेचने वाले लोग पैसों के लालच में आम नागरिकों की सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचाने और उन्हें बीमार करने का काम जानबूझकर कर रहे हैं। चूंकि उनके खिलाफ कभी सख्त कार्रवाई नहीं होती, इसलिए उनकी हिम्मत बढ़ती जा रही है। ज्यादातर मामले में कंपनियां मामूली जुर्माना अदा करके बच जाती हैं। कभी किसी मामले में अगर कोई गिरफ्तारी भी होती है तो बड़ी ही आसानी से आरोपी जमानत पर बाहर आ जाते हैं और दोबारा मिलावट और नकली खाद्य पदार्थों के उसी कारोबार में लग जाते हैं।

तिरुपति के प्रसादम लड्डू को लेकर सोचने वाली बात यह भी है कि तमिलनाडु की कंपनी एआर डेयरी एंड एग्रो फूड्स महज 320 रुपये लीटर कीमत पर कथित शुद्ध देशी घी उपलब्ध करवा रही थी। सवाल यह है कि क्या आजकल की महंगाई में मात्र 320 रुपये में एक लीटर शुद्ध देशी घी मिल पाना संभव है? इस पहलू पर गौर करें तो मंदिर प्रशासन ने क्वालिटी और शुद्धता को दरकिनार कर कम कीमत को ज्यादा तवज्जो दी, जिसका नतीजा मिलावटी घी और आस्था से खिलवाड़ के रूप में सामने आया। जाहिर है ‘प्रसादम’ के ‘धोखे’ के लिए एक नहीं बल्कि अनेक लोग जिम्मेदार हैं! क्योंकि प्रसादम से हर साल होने वाली 500 करोड़ की आमदनी कोई छोटी रकम नहीं है। भ्रष्टाचार सूचकांक में 180 देशों के बीच 93वें स्थान पर बैठे भारत में फिलहाल यह उम्मीद करना बेमानी है कि इतने बड़े मुनाफे के सामने कोई व्यापारी आस्था को सर्वोपरि रखकर अपना काम ईमानदारी से करेगा।

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